Sunday, January 26, 2014

मैं फिर जी लेना चाहता हूँ

कुछ पंक्तियाँ समर्पित है मेरे दोस्तों को और उन सभी लोगों को जो अपने हॉस्टल और कॉलेज के दिनों को याद करते हैं।

उन 4 सालों की यादों को, उन बेशकीमती लम्हो को,
उन अनगिनत रातो को, उन अनकही बातो को,
मैं फिर जी लेना चाहता हूँ।
चंद पल मैं ऐसे चाहता हूँ, मैं फिर जी लेना चाहता हूँ।

यारों से मिलना चाहता हूँ, गले लगाना चाहता हूँ,
संग उनके खेलना चाहता हूँ, खेल के झगड़ना चाहता हूँ,
वो तू तू मैं मैं चाहता हूँ, फिर गले लगाना चाहता हूँ,
चंद पल मैं ऐसे चाहता हूँ, मैं फिर जी लेना चाहता हूँ।

उन चाय के स्टॉलों में, उन गुमनाम आहतों में,
उन बेपरवाह कशों में, उन मदमस्त नशों में,
मैं फिर जी लेना चाहता हूँ।
चंद पल मैं ऐसे चाहता हूँ, मैं फिर जी लेना चाहता हूँ।

यारों से मिलना चाहता हूँ, मिल के हँसना चाहता हूँ,
हँस के पीना चाहता हूँ, पी के फिर रोना चाहता हूँ,
रो के फिर हँसना चाहता हूँ, हँस के फिर जीना चाहता हूँ।
चंद पल मैं ऐसे चाहता हूँ, मैं फिर जी लेना चाहता हूँ।

उस दीवानगी में, उस पागलपन में,
उस मस्ती में, उस उन्मुक्त गगन में,
मैं फिर जी लेना चाहता हूँ।
चंद पल मैं ऐसे चाहता हूँ, मैं फिर जी लेना चाहता हूँ।

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