Saturday, March 1, 2014

चाय वाला

चाय के नाम पे राजनीति में उफान से देश में आम चाय वाले के उत्साह और अचम्भे को कुछ पंक्तियों में पेश किया है ....

आला रे आला  'चाय वाला' आला,
   उनके आने से देश का हालत है सुधरने वाला,
वो आये है तो सूरज का उजाला होने वाला,
      वरना  यहाँ  तो  सब  था  काला  काला ।

पर हैरान परेशां है वो बाजू का चाय वाला,
      ये नेता  चाय का स्टाल क्यों खोलने वाला,
क्यों कल तक कोई नहीं था पूछने वाला,
       क्यों सब पुकारे आज चाय वाला, चाय वाला।

ऐसा क्या कर दिया मैंने, पूछा चाय वाला,
        जो नहीं कर पाया वो भैया बाजू वाला।
न कर पाये वो सुबह शाम का दूध वाला,
       न वो रद्दी, सब्जी, पान या  झाड़ू वाला।

हमने बोला, तेरी किस्मंत का खुल गया है ताला,
       इस चाय ने तुमको है विशेष बना डाला।
तुम जैसा एक नेता जो मिलने वाला,
    जिससे देश का चहमुखी विकास होने वाला।

इसमें हमे भी कुछ फायदा होने वाला,
    इसका जवाब है एक सच कड़वा वाला  ।
गरीबी को सबने चुनाव का एक खेल बना डाला,
      ऐसा ही  हैं  ये नेता राजनीति   वाला।
चाहे फिर वो हो  ये  पहले पार्टी वाला,
      या हो वो  दूसरा  और  तीसरा  पाला।

सुन ले पते की बात भाई चाय वाला,
      चुनाव का गणित  है ये  बहुत काला।
ये चाय की दुकान है नेतागिरी की शाला,
   तेरी गरीबी का उपाय कोई नहीं ढूँढने वाला।

बेरोजगारी का तो कुछ नहीं  होने वाला,
      और  न  रुकने  वाला कोई  घोटाला।
असली मुद्दो की जगह आम राय से,
    सबने तुमको ढूंढ लिया है 'चाय वाला'।।

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