Wednesday, April 23, 2014

पैसे ये पैसे

ये कैसे कैसे हैं पैसे,
     समझना बड़ा मुश्किल है वैसे।
 रुपया, डॉलर और यूरो,
          सभी कहलाते हैं क्यों ये पैसे।
कभी चेक में, तो कभी ड्राफ्ट में,
  कभी एटीएम कार्ड में होते हैं ये पैसे।
सफ़ेद भी होते हैं ये पैसे,
     तो कभी काले हो जाते हैं पैसे।
मेहनते के होते हैं वैसे,
  पर रिश्वत में भी मिलते हैं पैसे।

क्या क्या कराते हैं पैसे,
    समझना बड़ा मुश्किल है वैसे।
लगे रहते हैं सब  गधे के जैसे,
          करते रहते हैं बस पैसे पैसे।
अच्छे काम भी कराते हैं बहुत से,
       तो बुरे में और मिल जाते हैं पैसे।
कितना भी जोड़ लो वो पैसे,
      कम क्यों पड़ जाते हैं ये वैसे।
पीछे लगे रहते हैं सब इसके जैसे तैसे,
        कहीं कम ना पड़ जाएँ वो पैसे।

क्यों चाहिए इतने सारे  पैसे,
    समझना बड़ा मुश्किल है वैसे।
खुशियां ही चाहिए जिंदगी में वैसे,
    तो नहीं चाहिए बहुत से पैसे।
 न सोचो कि बनाये इनको कैसे कैसे,
    जिंदगी से बढ़कर नहीं हैं ये पैसे।
गर काम करोगे कुछ अच्छा जैसे,
   मिलेगा सब कुछ, भले कम हो पैसे। 
ऐसे ही हैं भाई ये पैसे,
   समझना बड़ा मुश्किल है वैसे।