Sunday, March 30, 2014

एक गुस्ताखी !

एक गुस्ताखी माफ़ कर मौला,पर इतनी तकदीर दिला दे,
जन्नत न मिले तो एक प्यारा सा जहान दिखा दे |

सूरज का प्रकाश न सही, चिरागों की रोशनी फैला दे,
कम से कम इस अंधेरे में कुछ उजाला तो करा दे|

प्यार न मिले तो सही पर वो नफ़रत तो मिटा दे,
अपने परायो के भेद की जगह सबके दिल वो मिला दे|

सबको अमीर न बना सके पर वो गरीबी मिटा दे,
हर इंसान, हर काम को एक सी इज्जत दिला दे|

जब दवा न दे सके तो कमसकम वो दारू पिला दे,
इस जखम का मर्ज न सही,  तो दर्द ही मिटा दे|

उन सितारों की जगह हो सके तो कुछ जुगनू दिला दे,
अँधेरी रात में मेरे आँगन को ऐसे ही झिलमिला दे|

कोई फ़रिश्ता न सही तो एक अच्छा इंसान बना दे,
खुदाई न सही तो कम से कम इंसानियत सिखा दे|


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