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Sunday, May 11, 2014

ये चुनावी खेल है !!

ये चुनाव का बड़ा रोमांचक हो रहा  खेल है,
राजनीति के टी २० में यहाँ बहुत से क्रिस गेल हैं|
सब बड़े नेतायों में जहाँ हो रहा हेड और  टेल है,
तो  छुटभैया नेतायों का भी हो गया मेलामेल है|
हर आदमी के वोट की लग गयी यहाँ सेल है,
कहीं किसी की जात तो कहीं धरम का मेल है|
चुनाव आयोग की जो थोड़ी बहुत नकेल है,
वरना हर नेता के पास पैसा और बाहुबल है|
मीडिया तो इन नेताओं की बन गयी टेल है,
इनकी वो खबर लगती ज्यादा चाट और भेल है|
वायदों को लेकर ये नेता अब तक  फ़ैल हैं,
जनता ने लगायी फिर से आशायों की रेल है|
भैया, ये तो चुनावी तमाशा देखने का खेल है,
बजाओ ताली नेता के लिए और बोलो आल इस वेल है !!

Wednesday, April 23, 2014

पैसे ये पैसे

ये कैसे कैसे हैं पैसे,
     समझना बड़ा मुश्किल है वैसे।
 रुपया, डॉलर और यूरो,
          सभी कहलाते हैं क्यों ये पैसे।
कभी चेक में, तो कभी ड्राफ्ट में,
  कभी एटीएम कार्ड में होते हैं ये पैसे।
सफ़ेद भी होते हैं ये पैसे,
     तो कभी काले हो जाते हैं पैसे।
मेहनते के होते हैं वैसे,
  पर रिश्वत में भी मिलते हैं पैसे।

क्या क्या कराते हैं पैसे,
    समझना बड़ा मुश्किल है वैसे।
लगे रहते हैं सब  गधे के जैसे,
          करते रहते हैं बस पैसे पैसे।
अच्छे काम भी कराते हैं बहुत से,
       तो बुरे में और मिल जाते हैं पैसे।
कितना भी जोड़ लो वो पैसे,
      कम क्यों पड़ जाते हैं ये वैसे।
पीछे लगे रहते हैं सब इसके जैसे तैसे,
        कहीं कम ना पड़ जाएँ वो पैसे।

क्यों चाहिए इतने सारे  पैसे,
    समझना बड़ा मुश्किल है वैसे।
खुशियां ही चाहिए जिंदगी में वैसे,
    तो नहीं चाहिए बहुत से पैसे।
 न सोचो कि बनाये इनको कैसे कैसे,
    जिंदगी से बढ़कर नहीं हैं ये पैसे।
गर काम करोगे कुछ अच्छा जैसे,
   मिलेगा सब कुछ, भले कम हो पैसे। 
ऐसे ही हैं भाई ये पैसे,
   समझना बड़ा मुश्किल है वैसे।

Sunday, March 30, 2014

एक गुस्ताखी !

एक गुस्ताखी माफ़ कर मौला,पर इतनी तकदीर दिला दे,
जन्नत न मिले तो एक प्यारा सा जहान दिखा दे |

सूरज का प्रकाश न सही, चिरागों की रोशनी फैला दे,
कम से कम इस अंधेरे में कुछ उजाला तो करा दे|

प्यार न मिले तो सही पर वो नफ़रत तो मिटा दे,
अपने परायो के भेद की जगह सबके दिल वो मिला दे|

सबको अमीर न बना सके पर वो गरीबी मिटा दे,
हर इंसान, हर काम को एक सी इज्जत दिला दे|

जब दवा न दे सके तो कमसकम वो दारू पिला दे,
इस जखम का मर्ज न सही,  तो दर्द ही मिटा दे|

उन सितारों की जगह हो सके तो कुछ जुगनू दिला दे,
अँधेरी रात में मेरे आँगन को ऐसे ही झिलमिला दे|

कोई फ़रिश्ता न सही तो एक अच्छा इंसान बना दे,
खुदाई न सही तो कम से कम इंसानियत सिखा दे|


Saturday, March 15, 2014

यह कैसी हवा है, यह कैसी लहर है !!

यह कैसी हवा है, यह  कैसी लहर है,
कर्णाटक को फिर देखना येदुरप्पा का कहर है|
जिस मोदी की चर्चा हर गाँव शहर है, 
उन की सीट को लेकर ही पार्टी में गदर है|
जिनके लिए  परिवारवाद  एक जहर है,
पासवान पिता-पुत्र उनके हमसफ़र है|

यह कैसी हवा है, यह  कैसी लहर है, 
UP और बिहार में जातियों पे नज़र है|
जो राष्ट्रवाद के साथ कहते हर पहर है,  
राज ठाकरे से मिल जाने की खबर है|
हर एक वोट की होड़ इस कदर है,
पानी की तरह पैसा  लगा इधर है|

भैया, ये तो सब  चुनावी समर है,
मुद्दे और निति की बात अब किधर है|
चुनावी टिकड़म बाजी की डगर है,
इनकी मंजिल एक दिल्ली शहर है|
यह ऐसी हवा है, यह चुनावी लहर है,
यह ऐसी हवा है, यह चुनावी लहर है||



Saturday, March 1, 2014

चाय वाला

चाय के नाम पे राजनीति में उफान से देश में आम चाय वाले के उत्साह और अचम्भे को कुछ पंक्तियों में पेश किया है ....

आला रे आला  'चाय वाला' आला,
   उनके आने से देश का हालत है सुधरने वाला,
वो आये है तो सूरज का उजाला होने वाला,
      वरना  यहाँ  तो  सब  था  काला  काला ।

पर हैरान परेशां है वो बाजू का चाय वाला,
      ये नेता  चाय का स्टाल क्यों खोलने वाला,
क्यों कल तक कोई नहीं था पूछने वाला,
       क्यों सब पुकारे आज चाय वाला, चाय वाला।

ऐसा क्या कर दिया मैंने, पूछा चाय वाला,
        जो नहीं कर पाया वो भैया बाजू वाला।
न कर पाये वो सुबह शाम का दूध वाला,
       न वो रद्दी, सब्जी, पान या  झाड़ू वाला।

हमने बोला, तेरी किस्मंत का खुल गया है ताला,
       इस चाय ने तुमको है विशेष बना डाला।
तुम जैसा एक नेता जो मिलने वाला,
    जिससे देश का चहमुखी विकास होने वाला।

इसमें हमे भी कुछ फायदा होने वाला,
    इसका जवाब है एक सच कड़वा वाला  ।
गरीबी को सबने चुनाव का एक खेल बना डाला,
      ऐसा ही  हैं  ये नेता राजनीति   वाला।
चाहे फिर वो हो  ये  पहले पार्टी वाला,
      या हो वो  दूसरा  और  तीसरा  पाला।

सुन ले पते की बात भाई चाय वाला,
      चुनाव का गणित  है ये  बहुत काला।
ये चाय की दुकान है नेतागिरी की शाला,
   तेरी गरीबी का उपाय कोई नहीं ढूँढने वाला।

बेरोजगारी का तो कुछ नहीं  होने वाला,
      और  न  रुकने  वाला कोई  घोटाला।
असली मुद्दो की जगह आम राय से,
    सबने तुमको ढूंढ लिया है 'चाय वाला'।।

Friday, February 14, 2014

हम तुम

Few lines in Hindi for my beloved wife  ...

मेरी साँसों में तुम, मेरी जिंदगी हो तुम,
अगर साथ न तेरा,तो जी न पाएंगे हम।  
मेरी नज़रों में तुम, मेरा दीदार हो तुम,
तुम न हो तो कुछ न देख पाएंगे हम।
मेरे जश्न में तुम, मेरी ख़ुशी हो तुम,
साथ हो तुम, तो भूल जायेंगे हर गम।
मेरी हंसी में तुम, मेरी मुस्कान हो तुम,
तुम न होते तो मुस्करा न पाते इस जनम।
मेरी प्रेरणा में तुम, मेरी शक्ति हो तुम,
ये जो साथ है तेरा, तो जिन्दगी में कुछ नहीं है कम।
मेरे प्यार में तुम, मेरी मोहब्बत हो तुम,
इस इश्क़ में हो गए हैं तेरे आशिक़  सनम।
मेरी शायरी में तुम, मेरी कविता हो तुम,
तुम ही हो सब कुछ, बिन तेरे कुछ भी नहीं हम।


Saturday, February 1, 2014

आम ही आम

राजनीति के बाजार में "आम ही आम" की sale लगी है। कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं:

सर्दियों में आम की ऐसी न देखी कभी डिमांड,
अब तो सभी को चाहिए बस आम ही आम।
अमरुद, अंगूर और संतरे चाहे हो कोई सा नाम,
पर सभी को है पसंद तो केवल वो है आम।

गाड़ी, बंगला और लाल बत्ती का क्या है अब काम,

खास को भी बनना है सिर्फ आदमी आम।
पर बहुतों का हो गया है ये देखना एक काम ,
कहीं कोई खास न बन जाये जो कभी था आम।

राजनीति तो भैया है अपराधी और भ्रष्टचारी का काम,

कैसे कोई आ गया इसमें आदमी ये आम।
करते रहो नए नए दुष्प्रचार सुबह और शाम,
ढूँढो नए उपाय कि कैसे करें एक दूसरे को बदनाम।
भूल गए सब भ्रष्टाचार और घोटालों के कांड,
अब तो करना है एक दूसरे का काम तमाम।

यारों देश के लिए कुछ तो अच्छा भी करो काम,
कयों नहीं सब मिल के बनाते हैं इसका फिर वो नाम।
और अपनी तो एक चाहत बस इतनी सी है राम,
ना हो कोई खास और ना हो कोई आम।।

Sunday, January 26, 2014

मैं फिर जी लेना चाहता हूँ

कुछ पंक्तियाँ समर्पित है मेरे दोस्तों को और उन सभी लोगों को जो अपने हॉस्टल और कॉलेज के दिनों को याद करते हैं।

उन 4 सालों की यादों को, उन बेशकीमती लम्हो को,
उन अनगिनत रातो को, उन अनकही बातो को,
मैं फिर जी लेना चाहता हूँ।
चंद पल मैं ऐसे चाहता हूँ, मैं फिर जी लेना चाहता हूँ।

यारों से मिलना चाहता हूँ, गले लगाना चाहता हूँ,
संग उनके खेलना चाहता हूँ, खेल के झगड़ना चाहता हूँ,
वो तू तू मैं मैं चाहता हूँ, फिर गले लगाना चाहता हूँ,
चंद पल मैं ऐसे चाहता हूँ, मैं फिर जी लेना चाहता हूँ।

उन चाय के स्टॉलों में, उन गुमनाम आहतों में,
उन बेपरवाह कशों में, उन मदमस्त नशों में,
मैं फिर जी लेना चाहता हूँ।
चंद पल मैं ऐसे चाहता हूँ, मैं फिर जी लेना चाहता हूँ।

यारों से मिलना चाहता हूँ, मिल के हँसना चाहता हूँ,
हँस के पीना चाहता हूँ, पी के फिर रोना चाहता हूँ,
रो के फिर हँसना चाहता हूँ, हँस के फिर जीना चाहता हूँ।
चंद पल मैं ऐसे चाहता हूँ, मैं फिर जी लेना चाहता हूँ।

उस दीवानगी में, उस पागलपन में,
उस मस्ती में, उस उन्मुक्त गगन में,
मैं फिर जी लेना चाहता हूँ।
चंद पल मैं ऐसे चाहता हूँ, मैं फिर जी लेना चाहता हूँ।

Sunday, January 12, 2014

आज

कुछ पंक्तियाँ समर्पित है मेरे दूरदर्शी  और महत्वाकांझी दोस्तों के लिए।

कल के चक्कर में क्यों लगे  हो यारों आज,
कि  कल किये होते कुछ तो अच्छा होता आज।
या कल को बनाना है तो गंवाना होगा आज,
जब खो गया होगा कल तो क्या मिल जायेगा  आज।
वो कल तुम्हारा नहीं है जिसके लिए बना रहे हो ताज़,
जो कुछ भी तुम्हारा है वो है सिर्फ आज।
कहता हूँ एक बात जो है जीवन का  राज,
कल कभी नहीं लौट के आएगा आज।
जो कल तुम ढूंढ रहे हो वो भी है आज,
जी लो रे भैया जी भर के जिंदगी आज,
जो भी है, वो सब है, केवल आज केवल आज॥

Friday, January 10, 2014

आप

दिल्ली में पहले किया हैरान पहले आप पहले आप ने,
फिर आप के कहने पर सरकार भी बनायीं आप ने ।
पर अब था आम आदमी का हाथ , आप के साथ ।
ये सब हो रहा था कि
मैं भी हो गया आप ,
वो भी हो गए आप ,
तुम भी हो गए आप ,
और हम भी हो गए आप ।
पर क्या आप होंगे 'आप ' ?